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देना होगा जर्रे-जर्रे का हिसाब खुदा के सामने

वैराग्य किसी के भी भीतर उतरे, होता उसका अपना शाही अंदाज़ है. संत-फकीरों को आज भी इसलिए याद किया जाता है कि उनके भीतर उतरे वैराग्य ने उनकी जीवनशैली को एक अलग ही ढंग दे दिया था. मुस्लिम संत हातमअसम चीजों को बड़े मजेदार ढंग से समझाया करते थे. एक बार उन्होंने स्वर्ग और नर्क को लेकर उन्होंने बड़ी गहरी और रोचक व्याख्या की . वे किसी कि दावत में गए हुए थे, दावत तीन शर्तों पर मंजूर कि गई थी. पहली- जहाँ चाहूँगा बेठुंगा और जब बेठने का मौका आया तो वे जूते-चप्पलों के पास जाकर बेठ गए. दूसरी शर्त थी जितना चाहूँगा, उतना ही खाऊंगा और बहुत गुजारिश के बाद भी उन्होंने दो ही रोटियां खाई. उनकी तीसरी शर्त थी जो में कहूँगा, वैसा ही करना होगा और उन्होंने एक तवा मंगवाया और वे उस गरम तवे पर खड़े हो गए. आसमान कि तरफ देखकर बोले- मैंने दो रोटियां खाई है. फिर तवे पर से उतरे और वहां मौजूद लोगों से कहा- यदि तुम्हे इस बात का यकीन है कि क़यामत में जर्रे-जर्रे का हिसाब देना होता है तो इस तवे पर खड़े हो जाओ. लोगों ने कहा- हमें यकीन तो है लेकिन हम इस तवे पर खड़े नहीं हो सकते. हातमअसम बोले- जब आप इस तवे पर खड़े होकर अपने गुजारे हुए एक दिन का हिसाब नहीं दे सकते तो क़यामत के दिन उस जमीन पर खड़े होकर, जहाँ केवल आग ही आग होगी, सारी जिंदगी का हिसाब कैसे दोगे. यहाँ फ़कीर ने समझाया है कि जो भी इस जिंदगी में कर रहे हो, ऊपर कोई इसका हिसाब रख रहा है. इसलिए अपने जमीर को साफ़ रखो क्योंकि जबाब एक दिन देना ही है.

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