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मन का स्वभाव

मन का स्वभाव है संकल्प विकल्प | जब उसमे संकल्प विकल्पों की लहरें उठती हैं तो मन व्याकुल होता है, इन लहरों का नाम ही मन है |इस संकल्प विकल्प के करण ही कल्पना उत्पन्न होती है, योजनाये बनती हैं, उनको पूरा करने के उपाय ढ़ूँढ़े जाते हैं| इनको पूरा करने के लिए शरीर और इन्द्रियां भी सक्रिय होते हैं, तब व्यक्ति कर्म करता है | अभिमान के करण वह कर्ता बनता है जिससे कर्मों का बंधन बनता है, नए संस्कार बनते हैं , इस प्रकार पूरा कर्म जाल बनकर तैयार हो जाता है | यह कर्म जाल ही संसार है यही बंधन है |

परमात्मा कहते हैं :- तुम एक चेतन आत्मा है , तेरा बंधन और मोक्ष नहीं है , तू एक है और शांत है| इसलिए अब तू नए सिरे से अपने ह्रदय को इन संकल्प विकल्प से दुखी मत कर नहीं तो फिर कर्मों के बंधन रुपी जाल में उलझ जायेगा| यह आत्मा तेरा स्वरुप है जिसे तूने प्राप्त कर लिया है अतः अब तू शांत हो कर आनंद मय हो कर अपने स्वरुप इस आत्मा में सुख पूर्वक स्थित हो|

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