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सुरक्षा का भाव उपजता परमात्मा पर भरोसे से


भक्त भगवान पर भरोसा करते है और सुरक्षा कि गारंटी भी चाहते है. हम जितना संसार से अपने आपको सुरक्षित रखना चाहेंगे, हमें परमात्मा के प्रति विश्वाश पैदा करने में उतनी ही परेशानी आयेगी. संसार में रहकर हम प्रयास करते है कि सुरक्षा का एक घेरा हमारे आसपास बन जाये. हमारे लिए कभी-कभी परमात्मा भी सुरक्षा करने कि वस्तु बन जाता है, जबकि होना चाहिए विश्वास. आप परमात्मा पर भरोसा रखिये, उसके बाद भूल जाईये कि आप सुरक्षित है या असुरक्षित, बाकि काम ईश्वर पर छोड़ दीजिये. भगवान हमेशा भक्तों से कहते है, तुम लोग सुखद सम्भावना के पात्र हो. इसलिए असंतोष और असमंजस से बाहर निकलो. भगवान तीन तरह के भक्तों को सावधान करते हुए कहते है, मैं उन लोगों से नाराज रहता हूँ जो लोग अन्याय करते है, जो सीधे-सीधे अन्याय सहते है और तीसरे वे लोग जो इन दोनों स्थितियों को देखते है. इस मामले में मुझे मूकदर्शक और गैर-जिम्मेदार लोग पसंद नहीं है. मैं अपने भक्तों का अंतिम समय तक और पुनः आरम्भ तक साथ देता हूँ. मेरे पास सुधार कि सम्भावना के अनेक अवसर है जो मैं अपने भक्तों के लिए सुरक्षित रखता हूँ. फिर भी भक्त है कि वे मुझे ही धोखा देने कि कोशिश करते है. हम भक्तों को यह समझना होगा कि अभी तक वह धूल नहीं बनी जो भगवन कि आँखों में झोंकी जा सके. भवन में रहो, भवन को अपने भीतर मत रखो. धन आपके खाते में रहे, दिल में न हो. ह्रदय में भगवान के प्रति विश्वास हो तो देह को भले ही संसार में उतार दें, फिर खतरा नहीं रहेगा. इसके अभ्यास में जरा मुस्कुराइए.......राधे-राधे

!! जय श्री कृष्ण !!

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