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शरीर के भोजन के साथ ही आवश्यक है आत्मा का भोजन

ध्यान, मेडिटेशन एक तरह का यज्ञ है. इस ध्यान यज्ञ में शरीर की आहुति देनी पड़ती है. शरीर के भोजन से तो हम परिचित है लेकिन आत्मा के भोजन के प्रति लापरवाह. आत्मा का भोजन है ज्ञान. ज्ञान वह नहीं जो जानकारी बदाये या विषय का शिक्षक बना दे बल्कि वह ज्ञान जो होश जगा दे. ज्ञान और जागरूकता का फर्क समझा जाये. शरीर को उपवास से नियमित किया जाये या जितना जरूरी हो उतना ही खिलाया जाये पर आत्मा को इसके भोजन ज्ञान (होश जगाने वाले) से भरपूर रखा जाये. ज्यादातर मौकों पर हमारी आत्मा भूखी रह जाती है. संत-फकीरों और हमारी शैली में फर्क है. जो लोग आत्मा के भोजन को जानते है, उनके जीने का अंदाज बदल जाता है. एक बार मेरे मित्र ने मुझसे पुछा कि आजकल आप सभी से अदब से मिलते हो, मैंने आपको अकेले में भी ऐसे ही देखा है. मैंने कहा भाई भीड़ में लोगों का अदब करूँ और अकेले में ईश्वर का अदब ना करूँ...ये क्या बात हुई ? मैं हमेशा अपने दोस्तों से कहता हूँ कि जब तक संदेह हो, प्रमाण ना मिले, तब तक मेरी बात का भरोसा मत करना.......राधे-राधे
!! जय श्रीकृष्ण !!

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