इस अभियान में जुडकर आप भी ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुचने में हमारी मदद कर सकते हैं | इस अभियान से जुड़ने हेतु यहाँ क्लिक करिए ।

जीवन में जरूरी है शिक्षा और विद्या का संतुलन

शिक्षा के विस्तार को इस युग में खूब लाभ मिला, परन्तु एक हानि भी हुई कि पड़े-लिखे अशांत हो गए. आज की शिक्षा सेवा का माध्यम होना थी, जो शोषण का कारण बनती गई. ये केवल शिक्षा के खतरे है. आचार्य श्रीराम शर्मा कहा करते थे- केवल शिक्षा ही नहीं, विद्या की भी आवश्यकता है . शिक्षा केवल बाहरी जानकारी देती है और विद्या भीतरी अनुभूतियाँ कराती है. शिक्षा संस्थानों, पुस्तकों, और अन्य तकनीकी माध्यमों से प्राप्त होती है. किन्तु विद्या का आरंभ होता है मौलिक चिंतन से. शिक्षा विचार देती है और विद्या विचार को आचार से जोड़ती है. शिक्षा के लिए खूब शिक्षक मिल जायेंगे लेकिन विद्या के लिए तो गुरु दूंदना< ही पड़ेगा.विद्या कहती है थोड़ा संयम साधो, आज के युग में निजी आवश्यकताओं और महत्वाकांक्षाओं को संभालना ही संयम है और सद्कार्य, सदभाव का विस्तार करना ही सेवा है. विद्या अपने साथ संयम और सेवा लाती है. किन्तु केवल शिक्षा लूट और शोषण करना सिखा रही है. केवल शिक्षा ने लोगों कि खोपड़ी और जेब भर दी पर निजी व्यक्तित्व को खोखला कर दिया. केवल शिक्षा लोगों कि आदतें बना देती है और विद्या स्वभाव तैयार करती है, आदतें ध्यान में बाधा है इसलिए शिक्षित पुरुष मेडिटेशन में मुश्किल से उतर पाता है. यदि उसे विद्या का सहारा मिला तो वह अधिक योग्य होकर ध्यान में उतर जायेगा. केवल शिक्षा खतरनाक है और केवल विद्या भी उपयोगी नहीं होगी.दोनों के संतुलन में ही जीवन का आनंद है.एक काम इसमें उपयोगी है जरा मुस्कुराइए ...राधे-राधे

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें